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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

~~~~~अगर मिले वक्त तुम्हें तो खामोश नज़रों से सूखी मिट्टी हटा देना~~~~~


Pradeep Singh Rana
 “अगर वक्त मिले तुम्हें तो इन खामोश नज़रों से सूखी मिट्टी हटा देना,

इक समन्दर नज़र आएगा आंसुओं से भरा तुम्हें, बस देखकर डर मत जाना,

बंद कर लेना कानों को अपने गर चीखों को तुम सुन न सको तो,

और पर्दा डाल लेना आँखों पर अपनी गर जख्मों को तुम देख न सको तो,

अगर फिर भी तुम्हारा मन करे चीखने - चिल्लाने का तो जोर से चिल्ला लेना “प्रदीप”  

बर्ना दिख रहा है मुझे तुम्हारी आंखों का पत्थर और जुवान का खोमोश हो जाना,

  अगर मिले वक्त तुम्हें तो खामोश नज़रों से सूखी मिट्टी हटा देना,”

                                                     लेखक: प्रदीप सिंह राणा !

         गावं –ओच ,डाक. –लाहरू, तहसील-जयसिंहपुर ,जिला –काँगड़ा हि.प्र.: 9805510521; 8894155669

 

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