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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

सोमवार, 3 अगस्त 2015

******रंगमंच******

अपने लहू के छींटों को रंग बना कर मंच पर  बिखेर देता है,
क्या खूब है यह पुतला भी बस कुछ लम्हों में ही दुनिया को आईना दिखा देता है,
 
कभी गिरता है तो कभी संभलता है दुनिया के दर्द को खुद में समा लेता है ,
कभी हँसता है तो कभी रोता है अनेकों रंग अपनी अदाओं से मंच पर बिखेर देता है
मगर जमाना इसे सिर्फ एक नाटक समझता है, उसे तडपता देख तालियाँ बजाता है और हँसता है,

वो क्या जाने हाल इस जख्मी परिंदे का जो सिर्फ अपने जख्मों के लिए मरहम ढूँढता है
यह रंगमंच है “प्रदीप” जिसका पर्दा जिन्दगी के साथ उठता है और मौत के साथ गिरता है,

प्रदीप सिंह

गांव –औच ,डाकघर –लाह्डू, तहसील – जयसिंह पुर, जिला – काँगड़ा , हिमाचल प्रदेश : 8894155669
Email: rana.pradeep83@gmail.com


 



 

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