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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

रविवार, 1 मार्च 2015

हर आंसू का दर्द एक सा नहीं होता..........................

अक्षर आस्मां से गिरती हुई बारिश की बूंदों को देखा होगा तुमने,                                             
क्या कभी समंदर की गहराई से उठते हुए तूफ़ान को देखा है ,   
                                                                               
गिरते हैं सूखी आँखों से भी आंसू कभी – कभी अगर गौर से देखा,
फर्क बस इतना होता  है की उनका बजन जरा कम होता है,

एक अजीब सा दर्द होता है जब पतंग का डोर से साथ छूटता है,

यह वो क्या समझें जो मोम के पंख लगा कर उड़ते है ,

इसका दर्द तो सिर्फ आसमान में उड़ता  पक्षी ही समझता है ,

पहले हँसता था मगर अब खामोश हूँ मैं,

समझ गया हूँ कि आँख से निकला हर आंसू एक सा नहीं होता है,
और हर आंसू के गिरने का दर्द भी  एक सा नहीं होता है ....
                                                  प्रदीप सिंह राणा I
  पता:  गांव-ओच, डाकघर-लाहडू, तहसील – जयसिंहपुर, जिला –काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश. 8894155669

 

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