All Rights are Reserved


मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

रविवार, 28 दिसंबर 2014

बाकि क्या था मैं सब भूल जाना चाहता हूँ ...........................

बाखिफ़ था मेरे दर्द से यह शहर सारा , हर रोज चर्चा करता और मेरे जख्मों को गहरा करता,
हादसों ने एकदम हिला दिया था मुझे, और मन की घुटन ने अनेक  सबालों को जन्म दे दिया था,

मेरी हालत पिंजरे में बंद उस पंछी की तरह थी, जो हर रोज बाहर निकले के लिए झटपटाता,
और अपने लहूलुहान पंखों के साथ बेबस होकर हर शाम एक कोने में चुपचाप बैठ जाता,

पागल कहने लगे  थे लोग जो कभी मेरे अपने होने का दाबा किया करते थे
अगर वक्त पर आकर तुमने मेरा हाथ न थामा होता,

अब मुझे दुनिया की परवाह नहीं और मैं बाकि सब भूल जाना चाहता हूँ
जिंदगी का सफर है जो बाकि बो सफर तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ

बाकि क्या था मैं सब भूल जाना चाहता हूँ ...........................

Pradeep Singh (Social Engineer) Kangra Himachal Pradesh.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें