गली में कभी फुर्सत मिले तो जाकर देखो ,
आएगा तुम्हें भी याद अपना
बचपन ,
यादों से जरा पर्दा हटाकर तो देखो ,
खुशियाँ ढूँढने के लिए तुम क्यूँ यहाँ – बहां भटकते हो,
यह सब दिखावे के रिश्ते हैं छोड़ देंगे मुशीबत में,
वक्त मिला है तो अपनों के साथ गुज़ार के तो देखो ,
सकूं मिलेगा दर्द में भी तुम्हें, बस थोडा सा दर्द बाँट के तो देखो,
समेटते-समेटते जिंदगी युहीं गुजर जायेगी ,
लेकिन कुछ चीज़ें फिर भी छूट जायेंगे ,
माना खुवाहिशें ज़रूरी हैं जीने के लिए, "प्रदीप"
मगर कुछ खुवाहिशें फिर भी अधूरी रह जाएँगी,
यह सच है की जिंदगी मिली है जीने के लिए,
मगर इस जिंदगी का क्या एक दिन यह भी रूठ
जायेगी........................प्रदीप सिंह राणा, काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
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