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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

लकीर के उस पार...............................

खींच दी लकीरें रिश्तों में लब्जों की दीवारें बना दी ,
आये न याद एक दुसरे की ये सोच कर हर चीज़ जला दी
पर दिल को कैसे जलाएं...........
दिन तो निकल जाता है यहाँ बहां घूम कर " प्रदीप "
बस एक रात  खुली आँखों से गुजारनी पड़ती है
और अगर गलती से आँख लग भी जाए
 तो उसकी तस्वीर सामने आ जाती है
प्रदीप सिंह ( चुन्नू )
अब मैं हर शाम महखाने में चला जाता हूँ
उसे भुलाने के लिए कुछ जाम पी लेता हूँ ,
मगर  फिर भी उसे भुला नहीं पाता हूँ
अब समझ में आया की यह दिल ही अपना नहीं है
रहता तो मुझमे है पर धड़कता किसी और के लिए है
 सोचता हूँ की खुद को को ही मिटा दूँ
न यह दिल धडकेगा न वो याद आएगी
जब चला खुले आसमान मैं खुद को मिटाने
तो गली मैं उसका जनाजा नज़र आया
मरने से पहले ही सो बार मर गया मैं ,
 उसको भुलाने के तरीके ढूँढने में भी पीछे रह गया मैं
अब फिर खींच गई है लकीर मेरे और उसके दरमियाँ
मैं लकीर के इस तरफ और वो उस तरफ खड़ी है ,
मर तो अब भी रहा हूँ मैं , बस फर्क इतना  है की ,
पहले उसे भुलाने के लिए और अब उससे मिलने के लिए मर रहा हूँ मैं,
लकीर के उस पार आ रहा हूँ मैं  .........................................
                                       
                                                                  प्रदीप सिंह (एच . पी. यू.) समर हिल
                                                                     जिला -काँगड़ा ,गाँव - ओच
                                                                               9459278609

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