एक सबाल |
राख हो गई बस्ती , यादें आसमान में गुम हो गई ,
रहती थी जहाँ हर पल रौनक ,वहां खामोशी सी छा गई ,
पड़ी हैं दबी लाशें हरतरफ अब भी राख से लिपटी हुई
कमबख्त ये बारिश भी मौत के बाद ही आनी थी ,
पड़ी हैं दबी लाशें हरतरफ अब भी राख से लिपटी हुई
कमबख्त ये बारिश भी मौत के बाद ही आनी थी ,
सुना है अब यहाँ आलिशान घर बनेंगे ,
जिसकी हिफाजत फिर भी हम लोग ही करेंगे ,
पर खुदा से आज मैं एक सबाल जरूर करूँगा ,
क्या हर दौर में, मैं गरीब ही रहूँगा ,
प्रदीप सिंह (एच. पी. यू. ) समर हिल शिमला (हि.प्र.)
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