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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

बुधवार, 28 सितंबर 2011

एक सबाल..................

एक सबाल 
राख हो गई बस्ती , यादें आसमान में गुम हो गई ,
रहती थी जहाँ हर पल रौनक ,वहां  खामोशी सी  छा गई ,
पड़ी हैं  दबी लाशें  हरतरफ अब भी राख से लिपटी हुई 
कमबख्त ये  बारिश भी  मौत के बाद ही आनी थी ,
सुना है अब यहाँ आलिशान घर बनेंगे ,  
जिसकी हिफाजत फिर भी हम लोग ही करेंगे ,
पर खुदा से आज मैं एक सबाल जरूर करूँगा ,
क्या हर दौर में, मैं  गरीब ही रहूँगा  ,


                       प्रदीप सिंह (एच. पी. यू. ) समर हिल  शिमला (हि.प्र.)







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