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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

वक़्त और हम ....................................


वक़्त गुजर जाने के बाद वक़्त का एहसास होता है ,
अपनों के बिछुड़ जाने के बाद अपनों का एहसास होता है,
        वक़त के हाथों से जिन्दगी  इस कदर फिसल जाती  हैं ,
       चोट बाद मैं लगती है दर्द पहले शुरू हो जाता   है ,
यूँ तो वक़्त के साथ -साथ हर रिश्ते बदल जाते हैं,
लेकिन उनमें से कुछ नासूर बनकर दिल को जख्मी कर जाते हैं, 
            पहले तो हम वक़्त को अपने पीछे भगाते हैं ,
             फिर वक़्त हमें अपने पीछे भगाता है ,
जिन्दगी युहीं गुजर जाती है  भागम -भाग मैं ,
 और हमारी कोशिश युहीं बेकार जाती है  .............................


                                    प्रदीप सिंह (एच . पी . यू. -समर हिल ) शिमला I



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