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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

यह रिश्ता याद रखना ..........................

बना लिया है मकां शीशे का पर दिल भी साफ़ रखना ,
दाग लग न जाये दोस्ती पर बस इतनी सी बात याद रखना ,
लिखी गई है कई गज़लें ,कई नज्मे दोस्ती पर ,
बस उनमें से एक गजल ,एक नज़्म याद रखना ,
बना लेना कितने ही रिश्ते शहर में जाकर तुम,
पर गाँव क़ी हर  झोम्पड़ी, हर  खेत  याद रखना ,
दर्द चाहे कितना भी हो जुदाई का बस उसे सीने में दबा के रखना ,
आएगा एक बार फिर से मौसम बरसात का ,
बस आँखों में अपने आंसू बचा के रखना ,
अनजान है दिल मेरा शहरों से ,डरता है कहीं गुम न हो जाऊं ,
अगर कभी भूल से आ जाऊं तो मेरी पहचान याद रखना ,
अगर भूलना ही होगा तो मुझे भूल जाना ,बेशक ,
पर साथ गुज़ारा हुआ वो हर पल याद रखना...................................

                                                   प्रदीप सिंह (एच . पी . यू . ) शिमला - समरहिल |


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