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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

जिंदगी को अब जीना सिख लिया है मैंने ..............................................

जिंदगी को अब जीना सिख लिया है मैंने ,
भरी है ऊँची उडान इरादों क़ि ,सारा बादल पी लिया है मैंने ,
अब गिराऊँगा आंसू उस रेगीस्तान मैं ही जाकर ,
मोती के लिए समंदर बना दिया है मैंने ,
अब मेरा कोई दुश्मन नहीं है ,जो था उसका कतल कर दिया है मैंने ,
पकड़ कर हाथ हज़ारों के साथ सफ़र जिंदगी का शुरू कर दिया है मैंने ,
अब रास्ते  भी खुश हैं और मंजिल भी, क्योंकि रास्तों को मंजिल से जो मिला दिया है मैंने ,

                         ............................ प्रदीप सिंह (एच पी यू  शिमला)

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