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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

देश क्या आज़ाद है ..............................

गुलाम आज भी हूँ पर शारीर पर बेड़ियाँ नहीं ,
रिश्ते आज भी हैं पर वो नजदीकियां नहीं ,
किताबें आज भी पढाई जाती हैं बचों को,
पर उसमें हमारी कहानियां नहीं ,
लड़े थे वो भी देश के लिए , लड़े थे हम भी देश के लिए ,
पर इतिहास मैं वो अब भी जिन्दा हैं पर हमारी निशानियाँ नहीं,
आजाद तुम हो हम नहीं ,लड़ाई अब भी जरी है पर सिपाही तुम नहीं,
चूमा था फांसी के फंदे को यह समझ कर की जिन्दगी अब शुरू हुई ,
लेकिन कौन जानता था यह जिन्दगी -जिन्दगी नहीं,
आज एक बार फिर लाल किले पर तिरंगा फेहराया जायेगा ,
की थी गुलामी अंग्रेजों की इसलिए याद किया जायेगा ,
यह कहकर की हम आजाद हैं पूरा वर्ष खून बहाया जायेगा ,
कहीं पर दंगे , कहीं पर बिस्फोट करके राजनीती को चमकाया जायेगा,
फिर औरत विधवा होगी ,फिर किसी माँ का वेटा खो जायेगा,
और फिर भी बड़े गर्व से "भारत माँ की जय " का नारा लगाया जायेगा,
---------------------------पर मैं आज भी यही कहूँगा : "गुलाम आज भी हूँ पर शारीर पर बेड़ियाँ नहीं ,
रिश्ते आज भी हैं पर वो नजदीकियां नहीं "-----------------------------"अपने आप को पहचानिए और अपने दिल पर हाथ रखकर कहिए देश क्या आजाद है

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कवितायेँ बहुत अछि हैं, लेकिन इनमे कुछ खामियां भी है,

    १- आपके वेब पेज का टेम्पलेट कुछ इतना खास नहीं है. इसस टेम्पलेट में विकर्षण बहुत ज्यादा है.
    २- अपने ब्लॉग में कभी अपने बेकार सा छायाचित्र नहीं डालना चाहियेया !
    ३- इसे रोज अपडेट करना चाहियेया.

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