गुलाम आज भी हूँ पर शारीर पर बेड़ियाँ नहीं ,
रिश्ते आज भी हैं पर वो नजदीकियां नहीं ,
किताबें आज भी पढाई जाती हैं बचों को,
पर उसमें हमारी कहानियां नहीं ,
लड़े थे वो भी देश के लिए , लड़े थे हम भी देश के लिए ,
पर इतिहास मैं वो अब भी जिन्दा हैं पर हमारी निशानियाँ नहीं,
आजाद तुम हो हम नहीं ,लड़ाई अब भी जरी है पर सिपाही तुम नहीं,
चूमा था फांसी के फंदे को यह समझ कर की जिन्दगी अब शुरू हुई ,
लेकिन कौन जानता था यह जिन्दगी -जिन्दगी नहीं,
आज एक बार फिर लाल किले पर तिरंगा फेहराया जायेगा ,
की थी गुलामी अंग्रेजों की इसलिए याद किया जायेगा ,
यह कहकर की हम आजाद हैं पूरा वर्ष खून बहाया जायेगा ,
कहीं पर दंगे , कहीं पर बिस्फोट करके राजनीती को चमकाया जायेगा,
फिर औरत विधवा होगी ,फिर किसी माँ का वेटा खो जायेगा,
और फिर भी बड़े गर्व से "भारत माँ की जय " का नारा लगाया जायेगा,
---------------------------पर मैं आज भी यही कहूँगा : "गुलाम आज भी हूँ पर शारीर पर बेड़ियाँ नहीं ,
रिश्ते आज भी हैं पर वो नजदीकियां नहीं "-----------------------------"अपने आप को पहचानिए और अपने दिल पर हाथ रखकर कहिए देश क्या आजाद है
hey Com Pradeep
जवाब देंहटाएंreally nice one
we hav to spread this message
आपकी कवितायेँ बहुत अछि हैं, लेकिन इनमे कुछ खामियां भी है,
जवाब देंहटाएं१- आपके वेब पेज का टेम्पलेट कुछ इतना खास नहीं है. इसस टेम्पलेट में विकर्षण बहुत ज्यादा है.
२- अपने ब्लॉग में कभी अपने बेकार सा छायाचित्र नहीं डालना चाहियेया !
३- इसे रोज अपडेट करना चाहियेया.