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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

सोमवार, 13 सितंबर 2010

ग़लतफ़हमियाँ मत पाल , जज्बा पैदा कर............................

अपने होंसलों का कद इतना लम्बा रख की आसमान भी तेरे आगे झुक जाये ,
अपनी सोच को इतना बड़ा रख की सारी धरती भी कम पड़ जाये,
   पर ग़लतफ़हमियाँ मत पाल , जज्बा पैदा कर............................
अपने दिल  को उस सागर की तरह रख ताकि सारे नदी ,नाले और दरिया आकर तुझमें समां जाएँ ,
मिटा दे संसार से नफ़रत का चलन, मर मिटें सब एक दुसरे के लिए ऐसी दवा पैदा कर के चल,
    पर ग़लतफ़हमियाँ मत पाल , जज्बा पैदा कर............................
रोशन रहे  हर झोंपड़ी ,हर घर ऐसी आग पैदा कर के चल,
मिट जाये भूख ,उगले धरती भी सोना , ऐसी मशीन ऐसा बीज पैदा कर के चल,
  पर ग़लतफ़हमियाँ मत पाल , जज्बा पैदा कर............................
तेरे होने का एहसास तेरे बाद भी हो , कुछ ऐसा काम पैदा कर ,
हर चोट बन जाये जख्म , हम सबका ऐसा दर्द पैदा करके चल,
    पर ग़लतफ़हमियाँ मत पाल , जज्बा पैदा कर............................
दुश्मन भी रोये तेरे जनाजे को रुखसत होता देख ,ऐसा लगाब पैदा करके चल,
हर होंठ तेरी चर्चा मैं हिले ,हर आंख तेरी राह देखे ,ऐसा विचार पैदा कर के चल,
 पर ग़लतफ़हमियाँ मत पाल , जज्बा पैदा कर............................प्रदीप सिंह ( एच .पी. यू. )












            

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